गुरुवार, 13 मई 2010

गुजरी सारी रात प्यार में....

गुजरी सारी रात प्यार में..
मदमाती निश्चल काया ने
जब अपना सिर रखा हृदय पर
अधिक गर्व हो आया मुझको
उस व्याकुलता पूर्ण समय पर
कौन जीव जीवित रख पाता
खुद को ऐसे प्रेम प्रणय में
लौकिक सुख था, छलक उठा
तभी अचानक अश्रुधार में
गुजरी सारी रात प्यार में....

पल-पल मेरी सजग चेतना
हृदय खींचता ही जाता था
अब न तनिक भी देर रुको
यूँ मौन चीखता ही जाता था
पल-पल बढ़ती व्याकुलता और
समय बीतता ही जाता था
कदम बढ़ा कर जाने कैसे
रुक-रुक जाता बार-बार मैं..
गुजरी सारी रात प्यार में..

मेरा मुझसे निबल नियंत्रण
आज हटा ही जाता था
रक्त दौड़ता द्रुतगति से और
हृदय फटा ही जाता था
विस्मय था कि उग्र चेतना
लुप सी होने वाली थी
दो भागों में स्वयं कदाचित
आज बँटा ही जाता था
"मन" को पागल हो जाना था
उर मे फैले हाहाकार में
गुजरी सारी रात प्यार में...

तभी फैलने लगी सूर्य की
किरणें मेरे आँगन में
और चन्द्रमा अभी तलक
था सोया मेरे आलिंगन में
ऐसे क्षण तो कभी-कभी
ही आते हैं इस जीवन में
प्रेम साथ हो और कटे
रैना सारी खुले नयन में
हार-जीत की बातें करने से अब कोई लाभ नहीं
कभी-कभी छुप ही जाती है
जीवन भर की जीत हार में
गुजरी सारी रात प्यार में....
गुजरी सारी रात प्यार में....

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

और चंद्रमा अभी तलक था सोया मेरे आलिंगन में
वाह वाह वाह
अद्भुत भावाभिव्यक्ति