गुरुवार, 13 मई 2010

किस भ्रम में..... २०/१२/7

तुम मुझे भूल ही चुके हो तो फिर
क्युँ मेरी श्वास श्वास अविरल है ,
क्युँ तेरी बाट जोहता सा हुआ
मेरे जीवन का सार व्याकुल है !
किस लिये आज़ तक निरन्तर है
मेरे सीने में धडकनों का क्रम
किस लिये पीर से नहायी हुई
मेरे नयनों की नींद बोझिल है !
किस लिये विरह के हर इक पल को
गूँथ कर गीत मैं बनाता हूँ
तुम नहीं आओगी तो किस भ्रम में
मैं तुम्हे आज़ तक बुलाता हूँ !!
तुम थे तब मैने पाये थे
कुछ दिवस हास परिहासों के
तुम थे तब "मन" ने देखे थे
मंजर कुसुमित मधुमासों के
तुम गये , साथ ले गये मेरे
मधुमय स्वप्नों का मूर्तिरूप ,
तुम बिन मेरे उद्धगार हुये
संक्षिप्त प्रश्ठ इतिहासों के
मैं खुद ही उन अवशेषों को
संचित करता हूँ , मिटाता हूँ ,
तुम नहीं आओगी तो किस भ्रम में
मैं तुम्हे आज़ तक बुलाता हूँ !!
तुम रखो जहाँ निज कुसुम पाँव ,
स्थल वह खुशहाली गाये ,
जिस ओर द्रष्टि का कोण फिरे
वह वस्तु तुम्हारी हो जाये ,
मैं गीत,गज़ल, के रूपों में
बस नेह तुम्हारा गाता रहूँ ,
हर पँक्ति प्रणय की श्रद्धा से
बस तुम्हे समर्पित हो जाये ,
भक्त,भगवान,की प्रथा की तरह
अपने सम्बन्ध मैं निभाता हूँ
तुम नहीं आओगी , पता है मुझे
फिर भी मैं बस तुम्हे बुलाता हूँ !
फिर भी मैं बस तुम्हे बुलाता हूँ !!

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