शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

एक ग़ज़ल

धड़क कर रह गया सीने में इक अरमान चाहत का
हमें भी होश था दिल को इरादा था मुहब्बत का !!

है देखा आँख ने मेरी जमीं से आसमां मिलते
बहस इस बात पर है पर ये रिश्ता है नजाकत का !!

गिरती ओस की बूँदे हैं अश्क-ए-दिल को दुन्धलाती
खुदा दे हम को भी मौका ज़रा इतनी शिकायत का !!

निभानी दुश्मनी सीखो तो जा कर मेरे दिलबर से
लगा कर दिल निभाता है जो हर रिश्ता अदावत का !!

मैं हर इक घर पे देकर दस्तकें गुजरा हूँ गलियों से
कोई दर मुन्तजिर हो है ये मुमकिन मेरी आहट का !!