धड़क कर रह गया सीने में इक अरमान चाहत का
हमें भी होश था दिल को इरादा था मुहब्बत का !!
है देखा आँख ने मेरी जमीं से आसमां मिलते
बहस इस बात पर है पर ये रिश्ता है नजाकत का !!
गिरती ओस की बूँदे हैं अश्क-ए-दिल को दुन्धलाती
खुदा दे हम को भी मौका ज़रा इतनी शिकायत का !!
निभानी दुश्मनी सीखो तो जा कर मेरे दिलबर से
लगा कर दिल निभाता है जो हर रिश्ता अदावत का !!
मैं हर इक घर पे देकर दस्तकें गुजरा हूँ गलियों से
कोई दर मुन्तजिर हो है ये मुमकिन मेरी आहट का !!
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008
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1 टिप्पणी:
kamal hai ji
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