गुरुवार, 13 मई 2010

शब्द शब्द मुझे प्यार करे..... २५/११/07

मैं खुद चाहूँ कविता मुझको थामे और स्वीकार करे
जिस के बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
ये अधूरी रह गई तो चेतना सो जायेगी
आसन्न प्रसवा नारी की प्रसव वेदना हो जायेगी
हो कर कविता पूरी मेरी इस पीडा का उपचार करे
जिस के बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
अधखुले केश,अधखुले नयन,अधखुले अधर मदमाते हैं
मेरी कविता मे आँसू और बिखरे सपने मुस्काते हैं
स्याही सिन्दूर बने इसका और कलम इसका श्रंगार करे
जिसके बारे में लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
कविता मे रूप तुम्हारा है,प्रति शब्द स्वयं मे तारा है
जो धूप खिले पल्को के तले उसमे सौन्दर्य तुम्हारा है
जब सुने इसे अन्तरमन से,तारीफ इसकी संसार करे
जिसके बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
तेरी आँखो पर,तेरे गालों पर,तेरे होठो पर,तेरे बालों पर
और अब लिखता हूँ जीवन के भूले बिसरे कुछ सालों पर
चाहत से सजे उन सालो मे क्या पूरा जीवन जी पाया
मै आज सोचता हूँ मैने तब क्या खोया था क्या पाया
मन भावो को लयबद्ध करूँ,प्रति पंक्ति व्यक्त विचार करे
जिस के बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे
जिस के बारे मे लिखता हूँ और शब्द शब्द मुझे प्यार करे

2 टिप्‍पणियां:

SurShivaayStudio - Live the Music ने कहा…

har shabd apne aap me pyar se bharpur hai

likhte rahe

Surabhi
Radio presenter
Fm gold ND

बेनामी ने कहा…

"स्याही सिन्दूर बने इसका और कलम इसका श्रंगार करे"
बहुत खूब - प्रशंसनीय प्रस्तुति