हर किसी हाथ मैं लम्बी उमर होती नहीं..
टूटता हैं जब ये दिल ,दिल को खबर होती नहीं..
मांगता हूँ मौत तो सब लोग कहते हैं मसीहा..
कौन समझे जिन्दगी मुझसे बसर होती नहीं..
सूखते हैं लब पपीहे के भला हम क्या करें..
कम्बख्त ये बारिश कभी भी वक़्त पर होती नही..
तू ना करना देख कर कोशिश मुझे ओ बे-सबब..
ये हवा दुनियाँ में सब की नामावर होती नहीं..
"क्या करूँ अब हो गया है तुझसे इतना फांसला..
सच कहूँ पर तेरे बिन पल भर गुजर होती नही..
गुरुवार, 13 मई 2010
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1 टिप्पणी:
सच कहूँ पर तेरे बिन पल भर गुजर होती नही
वाह बेहतरीन रचना
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